नमस्कार।
१/१२/१४ को लिखी अपनी एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आएगी। कविता का शीर्षक है ''सपना देख रे मनवा ''
सपना देख रे मनवा,
मुझे पूरा करने को जिसे,
दिन रैन की न हो फ़िक्र।
सुबहो शाम बस उसी का,
जुबां पर हो जिक्र।।
सपना देख रे मनवा,
दुनियां को भूलकर,
मैं खो जाऊँ जिसमें।
उसी में उठूँ,
और सो जाऊँ जिसमें।।
अधूरा रहूँ,
या पूर्ण हो जाऊँ जिसमें।।
सपना देख रे मनवा,
जिऊँ या मरूं,
बस कुछ ऐसा करूँ।
वो कुछ कहे,
ये कुछ कहे,
फिर मैं ना किसी से डरुं।।
सपना देख रे मनवा,
वही हो मृत्यु,
वही हो जीवन।
पूर्ण करने को जिसे,
लगा रहूँ आजीवन।।
सपना देख रे मनवा,
सार्थक करे जो,
मेरे मनुष होने को।
कुछ पाने को,
या कुछ खोने को।!
सपना देख रे मनवा।।।।।।।
अनिल ''अबूझ ''