नमस्कार।
कुछ लोगों की शिकायत रहती है कि मैं रोमांटिक जैसा कुछ नहीं लिखता। तो लीजिये कुछ उसी प्रकार की चंद पंक्तियाँ पेश है। अब ये रोमांटिक है या नहीं,ये मैं आप पर छोड़ देता हूँ।
और हाँ! दिल से पढियेगा,दिमाग से नहीं।
'' तुम और मैं ''
कच्ची कलि हो तुम,
कठोर तना मैं।
पुष्प-पुष्प विचरती अलि तुम,
एक स्थान पर स्थिर जड़ बना मैं।।
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हवाओं संग घूमती
फिरती हर गली तुम,
पाषाण सा दुनियावी उपेक्षाओं से
सना मैं।।
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खुशनुमा जीवन को देखती
महसूस करती,
नाजों से पली तुम।
अभावों में जीता
गिरता-पड़ता,
आज लौह-स्तंभ बना मैं।।
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अपनी जरूरतों को पूरा कर,
ये चली-वो चली तुम।
तुम्हारी पदचापों की धीमी होती आवाज सुनता रहा,
खड़ा पत्थर बना मैं।।
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