गुरुवार, 1 जनवरी 2015

सबसे बड़ा दिन

                         नमस्कार। 

  लो पिता भी बन गया। आज धरती पर अपने होने का कुछ अहसास हुआ। 
१५ दिसंबर १४ की रात लगभग ग्यारह बजे पत्नी को हस्पताल ले गया था। कोहरे भरी रात में पारिवारिक 
सदस्यों का सहयोग बहुत रहा। सगे ऐसे मौकों पर ही काम आते हैं। मैं तो इस मामले में बहुत ही खुश्किस्मत 
हूँ जो इतने भले लोगों से घिरा हूँ।
   खैर ! दिसंबर की ठिठुरन भरी रात। डॉक्टरनी साहिबा ने बोला कि बच्चा सुबह ही हो पायेगा। चार -पांच बजे। मैं तो सो गया गाड़ी में हीटर चलाकर। सारी रात माता -पिता और भाई -बंधु जगे रहे। सुबह चार बजे किसी ने 
चाय लाने के लिए जगाया। गाड़ी लेकर चाय लाने गया और आया तो हस्पताल में कुछ हलचल दिखी। 
    पता चला डिलिवरी होने वाली है। इससे पहले जब चार बजे जागा तो जागते हि मेरी जुबां पर एक ही बात थी,''लड़की होगी। '' क्योंकि कुछ देर पहले स्वप्न में मुझे दो x जुड़ते दिखे थे। अब आप कहोगे कि बड़ा सइंटिफ़िक सपना था। अरे भई ! विज्ञान का विद्यार्थी जो ठहरा। 
    किलकारियों से माहौल गूँज उठा। बाहर बैठे किसी सज्जन ने अनुमान लगाया ,''रोने की आवाज से तो लड़की लगती है। '' अंदर से नर्स ने आकर अनुमान को सही साबित कर दिया। 
    मन प्रफुल्लित हो उठा। रोमांच इतना था कि सर्दी का अहसास  तक नहीं हो रहा था। १६ दिसंबर ,सुबह के पांच बजे,बिटिया। बस यही शब्द जहन में गूंज रहे थे।

           मैं पिता बन चुका था ,एक प्यारी सी बिटिया का। 



                                                                                                    अनिल ''अबूझ ''


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