१२ जून की एक उदासीन शाम को लिखी अपनी कुछ पंक्तियाँ आपसे साझा कर रहा हूँ जिनमें ज्यादा कुछ
- नमस्कार।
न कर अपने ही सिद्धांतों और विचारों की चीरफाड़ की है।
''चलो,उठो,कुछ कर दिखाने का समय आ गया है।'' एक निहायत ही ग्रामीण और सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाला और एक विद्यार्थी जिसके मन में जब तब सवालों के कीड़े कुलबुलाने लगते हैं तो वह कविता की शरण लेता है। बस! यही मेरा परिचय है! स्वागत है आपका मेरी दुनिया में.……
१२ जून की एक उदासीन शाम को लिखी अपनी कुछ पंक्तियाँ आपसे साझा कर रहा हूँ जिनमें ज्यादा कुछ
- नमस्कार।
अनिल जी यह आत्मा कि वह रुनक झुनक है जो योगी को विचलित करती है
जवाब देंहटाएंआत्मा बहुआयामी है ...वह जीवन कि रचना करती है .जीवन क्या है ...मात्र
प्राण तो नही....वह प्राणो का प्राण है ...जो सत्य में निवास करता है.सत्य कि
व्याख्या को मन विवेक तक पहुंचता है ..विवेक आत्मा को निर्णय प्रदान करता है
अगर आप गलती से किसी ऐसे मंदिर में पहुंच गए है जहां पर सीढियाँ भय का
राग गा रही है तो आप गलत नही है ...सीढ़ियां ...मंदिर...परकोटा ....ध्वजा ...
गुंबद ...कोई भी गलत हो सकता है ..
आत्मा गलत को जान कर सही नही करती बल्कि वह गलत को गलत ही कहती है
कारी नही लगाती ....किनारी लगाती है ...
अनिल आप भी किनारी ही लगा रहे है ,
आत्मा का यह गीत जागता रहे .
लेकिन स्वयंम को गलत नही सुध बुध ही जाने -जो आत्मा है ..वरना तरेगा कौन ?
By: Pramod Kumar Sharma, Akashwani BIKANER