बुधवार, 1 मार्च 2017

kavita jannat

जन्नत/अनिल अबूझ
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हमतुम चले तो जायें किसी दूसरी दुनियां में
एक-दूजे का हाथ पकड़
बेशक
मगर तुम्ही बताओ
वहाँ किसी बाजार में
किसी पानवाले ताऊ के पीछे
बीड़ी पीने को कोठा मिलेगा?
या फिर तेज अदरक की चाय
जो मौसी बनाती है
ये नहीं तो
दीपू भाट की दुकान के आगे जो चौकी है
वो तो मिलेगी? हथाई वास्ते!
बूढे बाबे का कर्मजुध्द देखने को आँखें नहीं तरस जायेंगी?
कान भी तो तरसेंगे बखू सांसी की ऊंची आवाज को
क्या कोई डरा पायेगा हमें बल्लू अंकल की तरह आँखों से
डांगर-ढोर के बिना क्या जी पायेंगे हम?
खेतों के बिना घुटकर मर जायेंगे यार
मेरी मानो! यहीं रूकते हैं
यही जन्नत है साथी||
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#जन्नत

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