फिर खिलेंगे फूल चमन में
धरती फिर लहरायेगी!
पीर लहू और ऊंची लपटें
पुरानी बातें हो जायेंगी!
फिर आयेंगे मेहमां अंगना में
फिर हलवे परोसे जायेंगे!
फिर प्रेमिल पवनें और बसंत सब
मिलजुल गीत रचायेंगे!
चंद दिन का ये कोहरा सखी
फिर मिलजुलकर रह पायेंगे||
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"अबूझ"
धरती फिर लहरायेगी!
पीर लहू और ऊंची लपटें
पुरानी बातें हो जायेंगी!
फिर आयेंगे मेहमां अंगना में
फिर हलवे परोसे जायेंगे!
फिर प्रेमिल पवनें और बसंत सब
मिलजुल गीत रचायेंगे!
चंद दिन का ये कोहरा सखी
फिर मिलजुलकर रह पायेंगे||
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"अबूझ"
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